GHAZAL
જીવન માં કાશ એ મુકામ આવે,
કે તારા નામ પાછળ મારું નામ આવે,
મને આમ સીમિત ના કરો ગુફતેગૂ માં,
ભલે ચર્ચાઓ માં મારું નામ ખુલ્લે આમ આવે,
કદાચ વિસરી ગઈ ગાશે એ મારું નામ,
તો પણ યાદો તેને મારી ગુમનામ આવે,
લખવા તું મથે છે ખુબ પણ,
આખી કિતાબ જુવો તો ફક્ત મારું જ નામ આવે,
હવે તો બસ કર ઓ ખુદા રહેવા દે,
કદાચ ખુશી ને કાજ પણ આ આંસુ કામ આવે,
તારી જ તો આશ થી શ્વાસો હતા,
બાકી તો ‘વિક્ર્મ ‘,આ જીવન બીજે શું કામ આવે,
થંભી ગયું જાણે આ જીવન અને સફર,
ફક્ત તારી યાદ જ એક બેલગામ આવે ,
ધડી બે ધડી ને છેલ્લા શ્વાસો હોય અને આમ અચાનક તારો કોઈ પૈગામ આવે….
युही कभी कोई तन्हा नहीं होता ,
बिछड़ने का कभी कोई वादानहीं होता,
सुना है साहिलो (किनारे) पे भटकता है वोह ,
समंदर का कोई पता नहीं होता,
मार ना पाये हम उनके रहम से,
क्या अपनों से इतना नहीं होता,
जीवन की दोर है वक्त के हाथो,
अपने हाथो मरना भी नहीं होता,
सिमेटति है बूंद बूँद को अपने पर,
उस जमीन का कोई आसमा नहीं होता,
जिंदगी का लुफ्त (आनंद) यही है मान लो,
कयामत का किसी को पता नहीं होता,
काश अगर ऐ हो पता, तो तेरी अहमियत क्या होती,
मेरे हाथो देना, तेरे हाथो कभी लेना नहीं होता
उसी राहो पर मंज़िल मुझे ढूँढती रही,
गुज़रते कारवाँ से मेरा ठिकाना पूछती रही,
न जाने कहा खो गया है कायनात में,
मेरी परछाई मुझे ढूँढती रही ,
दिल में सांस फिर भी धड़कती रही,
वक्त की बारिश में तेरी जुस्तजू तो बह गई,
अंदर लगी थी जो आग वो जलती रही,
दूरियों बनाकर रही शम्मा महफिल में और,
आंखे आपकी चेहरा हमारा चुमती रही,
ना तो अच्छी थी ना तो सच्ची थी,
फिर भी ये दुनिया यूँ ही चलती रही ,
वैसे तो मै नशे का आदि न था मगर,
जिंदगी की तलब आखिरी सांस तक चलती रही..
बेबजाह क्यु दुनियावाले हैरान है, न आंखों में नूर,
न दिलो में जान है, सारे मंज़र में से एक ही तस्वीर उभरती है,
किसी अंजाने चेहरे की भी एक पहचान है,
यह इंसान में करीबी नजर आता है, अपनों से दूर खुद से अनजान है,
रातो का सन्नाटा कुछ कह रहा है, दिल में यह जज्बे के तूफ़ान है,
खुद की खातिर खुदा से खेलनेवाले हो, क्या समझाए क्या गीता क्या कुरान है,
शहर की भागदौड़ में शामिल होता है शख्स,
हाथ की मुट्ठी में बंधे हुए कई अरमान है…
આપણી એ વાત ને કાગળ પર ઉતારું છું,
અડીયલ ફકીર ની એ જાત ને કાગળ પર ઉતારું છું,
આ વેર ,અપમાન અને તફાવતો ના દ્રષ્ટિકોણ,
માનવજાત ને મળેલી આ ખેરાતને કાગળ પર ઉતારું છું,
આમ તો જીવન એટલે સદાકાળ રહેતી જુદાઈ જ,
પરંતુ વસલ ની એ રાત ને કાગળ પર ઉતારું છું,
હે આદમ ભલે અનેક કોઠા વિદ્યા હોય તે,
પણ અભિમન્યુ ને મળેલી એ માત ને કાગળ પર ઉતારું છું,
શબ્દો ના આ શંખનાદ અને શાશ્વતતા નું વરદાન ,
એક શાયર ની ઔકાત ને કાગળ પર ઉતારું છું,
આમ તો કૈક સિકંદરોપોધ્યા હશે કબ્રસ્તાન માં, હું તો અલખ ની એ વિસાત ને કાગળ..
कुछ तो फ़र्क है, कुछ तो फ़ासला है,पलकों पे बसे हुए ख्याल,
और हाथो की लकीरो के बीच, हाथो की लकीर दिखाई तो,
देती है तुटी हुई मगर टूटती नहीं है, और पलकों पर बसे ख्वाबों ,
दिखाई तो नहीं देते मगर, यूही टूट जाते हैं और,आँखों से बह जाते हैं…
(पहले सोचते थे हम जिंदगी की हर खुशी मिल गई,
और अब लगता है किसी गम से भी हम जुदा ना रह सके..)
कई साल बीत गए, कुछ मौसम गुज़र गए,
मगर वक्त के पेड़ पर ,आज भी एक शाखा है,
जिन पर कहीं जर्द का,नामोनिशान तक नहीं है,
कई तुफान आये और आ कर चले गए ,
कई फ़िज़ाये आई और आ कर चली गई,
मगर उन शाखा पर, बहारो का शमा आज भी छाया हुआ है,
कई बाग़बान बदल गए, कई सैयाद भी गुजर गए,
परिंदे उसि शाखा-ओ-गुल,
पर आ आ कर चहकते थे, और फना होते थे,
आज भी होते हैं और होते रहेंगे, कभी अपने लिए,
कभी औरो के लिए, उस गैरकानी शाखा हो,
यह बेदर्द ज़माना, इश्क-ओ-मुहब्बत के नाम से जानता है
अगर इन आँखों में सपनों का न बसेरा होता,
न मैं, न तुम, न तो ये जहाँ प्यारा होता,
यू ही कभी कोई तन्हा नहीं होता,
बिछड़ने का कभी कोई वादा नहीं होता,
सुना है साहिलों पे भटकता है वो,
समंदर का कोई पता नहीं होता,
मर ना पाये हम उनके रहम से,
क्या अपनों से इतना नहीं होता,
जीवन की डोर है वक्त के हाथो,
अपने हाथो मरना भी नहीं होता,
सिमटती बूंद बूंद को अपने पर,
उस जमी का कोई,आसमा नहीं होता,
जिंदगी का लुफ्त यही है, मान लो,
कयामत का किसी को पता नहीं होता,
काश अगर ये हो पता, तो तेरी अहमियत क्या होती,
मेरे हाथ लेना, तेरे हाथ हाथों कभी देना नहीं होता…
बदन के लिबास में आजकल पत्थर फिरते हैं,
सुकून की तलाश में दर-ब-दर फिरते हैं,
ताकते रहते हैं किसी को खुश देखकर,
हंसी को हादसे का नाम देकर फिरते है,
समा देता है कितनी हस्तियो को अपने जिस्म में,
यहाँ बूंद बूंद की प्यार लिए वही समंदर फिरते है,
कोसते रहते हैं अपनी तन्हाइयों को एक वक्त,
जिंदगी ओके बीच में वही तन्हा मगर फिरते है,
सरहदों के जुदा दिलों की सियासत नहीं होती,
लुटाने से भी कम मगर ये दोलत नहीं होती,
जमाने की हवा भी थम गई उसे बुझाते बुझाते,
खत्म कभी किसी से शम्मा-ए उल्फत नहीं होती,
उसे हक ना था मेरा दिल तोडने का मगर,
मोहब्बत की राहों में रिवायत नहीं होती,
हर एक शख्स यहाँ सवाली बन बैठा है और,
ख़ुदा को कभी किसी से शिकायत नहीं होती,
भले ही जुल्म के हाथ फैलाए कोई,
तलवारो से कभी कलम की शिकस्त नहीं होती,
आये कुछ लोग लूटने हमें मगर,
हम फकीरो की जॉली में सल्तनत नहीं होती,
फिराक ए मौत की कोई दावा नहीं होती,
जाने वाले इस बात से बेखबर थे,
कुछ यू ही ये आंखों की जीनत बन बैठे,
आंसू अरमानों की मौत से बेखबर थे,
चुने है शाखा से खुशबू की खातिर,
फूल भी खुद इस बात से बेखबर थे,
फ़िराक़-ए-मौत = मृत्यु नी जुदाई*,
आफताब की रोशनी का छा रहा नशा ,और एक शाख़ से अहिस्ता सी खिलती कली,
आँखों से फिर इक बार अरमानो को, सँवारता हुआ आदमी,
और फिर से वक्त के एक नए मोड से, सफर को बढ़ाता हुआ आदमी,
थमते थमते चलता रहता ,हँसते होते चलता रहता आदमी,
कभी फ़ासला कभी नज़दीकियाँ , कभी किनारे तो कभी बीच दरिया,
वक्त का नन्हा सा खिलौना आदमी,पत्थरों को पूजता ,
रिवायत से झुकना, मुस्केलियो से हlरता ,तन्हाई से भागता, ख़ुदा के बनाया हुआ आदमी ,
जिदंगी की जुस्तजू, मौत का डर,दूसरों की खुशियाँ,अपनों का गम,
हसरतों की जंजीरों मैं छटपटाता हुआ आदमी,कभी के मुराजते हुई,
फूल तक का सफ़र, और आहिस्ता से उतरता हुआ आफ़ताब का नशा,
फ़िर से थका हारा, गुजरे हुआ कल की यादो के साथ,
आनेवाले मृगजल की और उसी हिरण की तरह, दौड़ता
भागता दौड़ता भागता दौड़ता हुआ आदमी…
खामोश ज़िल सा चेहरा,छलकते हुए पयमाने सी नज़रे,
दांतो के बिच दबे हुए होठ, रुका हुआ वक्त और, धड़कता हुआ दिल,
रुख़्सार पे पसीने की बुंदे, कांधे से आहिस्ता सा सरकता दामन,
चेहरा पे लहेराती बिखराती जुल्फे,मेहंदी से सजे हुए हाथ,
और उसपे चूड़ियो की खनखनाहट ,तेरे पेरो की पायल की खनक,
जैसे सातो सुरो की बजती जनक, तेरा इतजार खुशबू से महेकता आलम,
तेरा बोलना जैसे बारिश का भीगा मौसम, तेरा रूठना जैसे मीठी धूप,तेरा रुकना जैसे कायनात हो चुप,
तेरी जिंदगी एक त्योहर होगी, सारी उमर एक बहार होगी,
खुशीयो के रंगो से भरा तेरा दिन होगा,तेरी हर रात दिवाली होगी,
तेरा हर लबज हुआ होगा, तेरी हर मुस्कान दवा होगी,
तेरे ही ख्यालो की रातो में, मेरी जिंदगी करवटें लेती हैं,इंतजार में उम्मीदों से सजी आंखें,
सबी दर्द-ओ-गम हो कहाँ छुपा देती है,मुझे पता है तुम आओगी,
और मुझे अपने दिल में बसाओगी, वरना इक आह बनकर,उम्रभर मुजे सताओगी
थोड़ी खुशिया कुछ गम बचाके रखो ,दिल में कभी दूसरों को बसाके रखो ,
अपने पर तो दुनिया ऐतबार करती है,आँखों में न रह पाये आँसू बन गये,
खाबो में ही सही हमें बसा के रखो,दिल को ही हमदर्द बनालो अपना,
तन्हा में भी ख्यालो की महफ़िल सज़ा के रखो,खो जायेगा एस पैमाना में यह आलम,
आँखों के जाम पलकों में छुपा के रखो, फासला ख़त्म होते ही ख़त्म यह सफर होगी,
अपनों से भी थोड़ी दूरियां बना के रखो….
तन्हाईयों से एक यार मांगे, सिंदूर से हम दो चार मांगे,
आंखों की ही बारिश सही, भीगना तो हम बेसुमार मांगे,
वो बचपन वो मासूमियत, क्यू ना हम वो बार बार मांगे,
किताबो के पन्ने उलट ने दो ज़रा ,वक्त से वो पहला सा इंतजार मांगे
तू उसकी दोस्ती या दुश्मनी पे ना जा ,
वो सियासी है ,तू उसकी कुर्बानी पे न जा,
हुए कई गुलशन बर्बाद यहाँ पर,
तू मजहब वालो की महेरबानी पे न जा ,
फासले तो दिमागों की पैदाइश है,
अभी से तू फुकत की कहानी पे न जा ,
तन्हाई , रुस्वाई, जुदाई का खेल है ये,
मुहोब्बत में तू चार दिन की रवानी पे न जा,
वह हादसा , वह मेरी बेवफाई के किस्से,
तू दुनियावाले की जुबानी पे न जा,
हर दुआओ में तेरा यु शामिल होना,
तू अपनी ही दी हुयी निशानी पे न जा,
जुरियायो में कैद होते अक्सर कई राज,
ऐ मुंसिफ, तू मेरी इस जवानी पे न जा,
वह माफ़ तो कर देगा तेरी हर गुस्ताखी,
मगर तू उसकी इस नादानी पे न जा,
બે જીવ થી રચાયેલો આ સુર છે
બિલી,તુલસી સમો પવિત્ર , તોયે પણ એક કસૂર છે,
ચલ ડૂબકી મારીએ , ધોવાય જશે આ રંજ ,
આ ધોધ બીજું કઈ ની , ગંગોત્રી નું જ પુર છે,
આથમતો આ સુરજ અને ખીલેલી આ સંધ્યા,
લેંગે છે તારા માથા પાર રેલાયી ગયેલું સિંદૂર છે,
તારા અસ્તિત્તવ નો આ થનગનાટ,
લાગે છે કે રાધા અને મીરા નું જ આ નૂર છે,
પુણતા, સંપુણતા છતાં ય છલકાતો આ ખાલીપો ,
કદાચ “અધૂરું રહેવું” એ જ પ્રેમકથા નો દસ્તુર છે,
શૂન્ય સમું છે અંતર, તોયે જોજનો દૂર છે,
મિલન ના ભવ ની વાટ માં બેય જીવ આતુર છે